पुर्वांचल

आजमगढ़: राजभर समाज के सोशल एक्टिविस्ट डा पंचम राजभर ने प्रामाणिक अभिलेखों के अनुसार डाक टिकट पर विजली भर लिखे जाने की आवाज़ उठाई ।

लखनऊ:  डा पंचम राजभर राजभर समाज के सोशल एक्टिविस्ट ने 12 वीं सदी के भारतीय शासक भारशिव नागवंशी राजा महाराजा विजली भर के स्थान पर महाराजा विजली पासी के नाम से जारी डाक टिकट को प्रामाणिक अभिलेखों के अनुसार नाम संशोधित कर महाराजा विजली भर किये जाने के संबंध में राष्ट्रपति महोदया को पत्राचार किया है । डा पंचम राजभर ने कहा कि साक्ष्य के आधार पर इसे करेक्ट किया जाए । न की समाज को लड़ने का इससे दो समाज को आपस में बैमनाशता उतापन हो रही है ।सरकार को पुनः विचार करना चाहिए ।
             भारत देश व समाज की एकता अखंडता संप्रभुता एवं उसकी संस्कृति सभ्यता की रक्षा करने वाले उन तमाम भारतीय वीर सपूतों,महापुरुषों शासकों,शहीदों के सुकार्यो सहित प्रेरणादायी जीवन वृतांतों को समाज के पटल पर चिरस्थायी व अविस्मरणीय बनाने के लिए प्रामाणिक तथ्यों को तत्समय के साम्राज्य के ध्वंशाशेषों का शोध,अध्ययन,पर्यवेक्षण के आधार पर वास्तविक रूप से साहित्य,इतिहास लेखन व सरकारी तौर पर स्मृति में नामकरण आदि के माध्यम से आम जनमानस के प्रसंज्ञान में पठन पाठन,स्मरण चिन्ह हेतु मुद्रण व प्रकाशन का कार्य भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा सकारात्मक प्रयास किया जा रहा है जो कि उन देशभक्त राष्ट्र वीरों के देश व समाज के लिए किए गए राष्ट्रीय योगदान के प्रति कृतज्ञता है ! जो अत्यन्त सराहनीय व प्रशंसनीय कार्य है !
वर्तमान में उ प्र के जनपद लखनऊ में स्थित 12 वीं सदी के शूरवीर भारतीय सम्राट *भारशिव नागवंशीय शासक *महाराजा विजली भर* के संबंध में सादर आकृष्ट कराना चाहता हूँ कि महाराजा विजली भर जी के वीरतापूर्ण जीवन वृतांत को दृष्टिगत रखते हुए उनकी स्मृति में भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा महाराजा *बिजली पासी* के नाम से डाक टिकट जारी किया गया है ! जिसमें नामकरण में तथ्यहीन जातिगत पासी का उल्लेख किया गया है, वैसे तो राष्ट्रभक्त/ महापुरुष पूरे देश की धरोहर हैं उन्हें किसी जातिगत सीमा में समेटना उचित नही प्रतीत होता है जैसा कि महाराजा बिजली पासी का उल्लेख किया गया है ! फिर भी भारत देश में लोकतंत्र के साथ साथ सामाजिक रूप से मान्य बहुप्रचलित प्रथा चतुष्वर्णीय वर्णाश्रम की गैरबराबरी वाली *सामाजिक व्यवस्था के विधान* के अनुसार जातियों में विखंडित मानव समाज मे जातिगत महत्ता का भी स्थान है उसी कड़ी में अन्य शासकों की तरह महाराजा विजली को भी संबोधित किया गया है जबकि प्रामाणिक गजेटियर ( *Uttar Pradesh Distric Gazzetteer Barabanki by smt Basanti Joshi State Editor 1964 के पेज सं 23* तथा लखनऊ जिला गज़ेटियर *आदि* ) व अन्य साहित्यों में साक्ष्यों के अनुसार महाराजा विजली को भर जाति का राजा अंकित किया गया है ! जिसके आधार पर सन् सत्तर के दशक में तत्कालीन लखनऊ के मेयर मा श्री दाऊ जी गुप्ता ने महाराजा *विजली भर* की भग्नावशेष किला परिसर में एक सरकारी तौर पर भब्य आदमकद प्रतिमा अधिष्ठापित कर *शिलापट्ट* पर महाराजा विजली भर का उल्लेख किया परंतु सन नब्बे दशक के आसपास दशक पासी जाति के तथाकथित इतिहासकारों व राजनेताओं ने तत्कालीन सत्ता का दुरुपयोग कर उस बिजली भर के नाम के शिलापट्ट को हटाकर अनैतिक व अवैधानिक रूप से जबरदस्ती विजली पासी का अंकन करा दिया, इतना ही नहीं सत्तासीन विशेष राजनैतिक दल के पासी जाति के लोगों ने राज ताकत के बल पर अपने पद व गरिमा के प्रभाव का दुरुपयोग कर निहित स्वार्थवश प्रामाणिक तथ्यों को दरकिनार कर वास्तविक नाम विजली भर जाति की जगह विजली पासी जाति के नाम का उल्लेख किया और शासन में दबाव बनाकर त्रुटिपूर्ण ढंग से सरकारी धन के माध्यम से बिजली पासी किला का निर्माण भी करा लिया ! संभवतः जिसे आधार मानकर भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा जारी डाक टिकट पर भी अप्रामाणिक रूप से विजली पासी के नाम का उल्लेख कराया गया है,जिससे समाज में निष्पक्ष वास्तविक इतिहास को लेकर उहापोह की स्थिति बनती जा रही है तथा सामाजिक भाई चारा पर भी प्रतिकूल प्रभाव से विद्वेष की भावना बलवती हो रही है !
  अतएव कृपया वर्णित परिस्थितियों में विषय की संवेदनशीलता एवं महत्ता का गंभीरता पूर्वक संज्ञान लेते हुए तथ्यों के आधार पर पासी जाति के तथाकथित अप्रामाणिक इतिहासकारों व राजनेताओं द्वारा अनैतिक दबाव वश किये गए विकृत इतिहास को प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर महाराजा विजली पासी के स्थान पर शुद्ध रूप से विजली भर नामकरण कर डाक टिकट भी संशोधित कर हर जगह उल्लिखित करने हेतु तत्सम्बन्धित को निर्देशित करने की कृपा करें !जिससे कि महाराजा विजली भर का वास्तविक इतिहास समाज के पटल पर परिलक्षित हो सके जिससे राजभर समाज सदैव आपका आभारी रहेगा ।
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