उत्तर प्रदेश

ऑफिस के बाद ‘बॉस’ का फोन उठाने की टेंशन होगी खत्म? लोकसभा में पेश हुआ ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025’

● सुप्रिया सुले ने पेश किया प्राइवेट मेंबर बिल: काम के घंटों के बाद कॉल-ईमेल का जवाब देने के लिए मजबूर नहीं कर सकेंगी कंपनियां
● नियम तोड़ा तो लगेगा जुर्माना: कर्मचारियों की कुल सैलरी का 1% देना होगा हर्जाना

नई दिल्ली: अगर आप भी ऑफिस से निकलने के बाद बॉस के फोन, मैसेज या ईमेल से परेशान हैं, तो यह खबर आपके लिए बड़ी राहत लेकर आ सकती है। कर्मचारियों को मानसिक तनाव से बचाने और ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ सुधारने के लिए लोकसभा में एक बेहद अहम बिल पेश किया गया है— ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025’।


एनसीपी (NCP) सांसद सुप्रिया सुले ने शुक्रवार को सदन में यह प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। अगर यह बिल कानून बन जाता है, तो कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाद दफ्तर के काम से ‘डिस्कनेक्ट’ होने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा।
क्या है ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ का मतलब?
इस बिल का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को यह अधिकार देना है कि वे अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद काम से संबंधित किसी भी इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन (फोन, ईमेल, व्हाट्सएप) का जवाब देने के लिए बाध्य न हों। साधारण शब्दों में कहें तो, शिफ्ट खत्म होने के बाद अगर आप बॉस का फोन नहीं उठाते हैं, तो कंपनी आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगी।
कंपनियों पर लगेगा भारी जुर्माना
बिल में नियमों का पालन न करने वाली कंपनियों (Entities) के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं। प्रस्ताव के मुताबिक, अगर कोई कंपनी या संस्था अपने कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाद काम करने के लिए मजबूर करती है, तो उस पर कर्मचारियों की कुल सैलरी (Total Salary) का 1 प्रतिशत बतौर जुर्माना लगाया जा सकता है।
सांसद का तर्क: डिजिटल दौर में धुंधली हुई लकीरें
बिल पेश करते हुए सुप्रिया सुले ने तर्क दिया कि आज के डिजिटल और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के दौर में काम में तो लचीलापन (Flexibility) आया है, लेकिन इसने प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच की लकीर को धुंधला कर दिया है।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “इस बिल का मकसद डिजिटल कल्चर से होने वाले ‘बर्नआउट’ (अत्यधिक थकान व तनाव) को कम करना और कर्मचारियों को बेहतर क्वालिटी ऑफ लाइफ देना है।”
प्राइवेट मेंबर बिल क्या है?
संसद में जब कोई ऐसा सांसद बिल पेश करता है जो मंत्री नहीं है, तो उसे ‘प्राइवेट मेंबर बिल’ कहा जाता है। यह बिल सत्ता पक्ष या विपक्ष का कोई भी सांसद पेश कर सकता है, जिसे वह जनता के हित में जरूरी समझता है।

बिल की 4 बड़ी बातें:
* अधिकार: शिफ्ट के बाद कॉल-ईमेल इग्नोर करने की आजादी।
* मकसद: वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा और तनाव कम करना।
* सजा: नियम तोड़ने वाली कंपनियों पर 1% का जुर्माना।
* दायरा: सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों को राहत देने की कोशिश।

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