राजनीति

कुर्सियाँ दो…??
लेकिन आवाज़ किसकी?
राजभर समाज का असली प्रतिनिधित्व कहाँ?”

सत्ता के शीर्ष पर ‘राजभर समाज’ का दबदबा, लेकिन बड़ा सवाल- क्या समाज तक पहुंच रहा है भागीदारी का लाभ?

सीएम योगी के अगल-बगल दिखे ओम प्रकाश और अनिल राजभर; तस्वीर ने छेड़ी नई सियासी बहस

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रतीकों और तस्वीरों का अपना एक अलग महत्व होता है। हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक की तस्वीर ने सियासी गलियारों में नई चर्चा को जन्म दे दिया है। इस तस्वीर में सीएम योगी के एक तरफ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर बैठे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा के कद्दावर नेता और मंत्री अनिल राजभर नजर आ रहे हैं।
यह दृश्य मात्र एक संयोग नहीं, बल्कि एक सोचा-समझा राजनीतिक संदेश है। यह तस्वीर चीख-चीख कर गवाही दे रही है कि वर्तमान सरकार में राजभर समाज का प्रतिनिधित्व इतिहास में अब तक के अपने सबसे मजबूत स्तर पर है।


प्रतिनिधित्व दमदार, पर क्या परिणाम असरदार?


मुख्यमंत्री के दोनों बाजु बनकर बैठे ये दो दिग्गज नेता यह साबित करते हैं कि पूर्वांचल की राजनीति और वोट बैंक में राजभर समाज की धमक को नकारा नहीं जा सकता। सत्ता के गलियारों में समाज की पहुँच ‘फर्स्ट रो’ (First Row) तक हो चुकी है।
लेकिन, इस चमक-दमक के बीच समाज के भीतर से ही एक चुभता हुआ सवाल भी उठ रहा है। बुद्धिजीवियों और आम जनता का कहना है कि “नेताओं का कद तो बढ़ गया, लेकिन क्या समाज का कद बढ़ा?”


कुर्सी मिली, पर हक का क्या?


राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मंत्री पद मिलना और मुख्यमंत्री के बगल में बैठना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन क्या ये नेता समाज के ज्वलंत मुद्दों—शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक न्याय—पर उतनी ही मुखरता से अपनी बात रख पा रहे हैं? या फिर यह निकटता महज सियासी समीकरण साधने और कुर्सी बचाने तक सीमित है?
समाज का एक बड़ा तबका आज भी यह महसूस करता है कि प्रतिनिधित्व का असली अर्थ तब सार्थक होगा जब सत्ता की यह ताकत समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाएगी।


निष्कर्ष


तस्वीर सुखद है और समाज के लिए गर्व का विषय भी। लेकिन, ओम प्रकाश राजभर और अनिल राजभर जैसे दिग्गजों के लिए यह तस्वीर एक चुनौती भी है। चुनौती यह साबित करने की, कि वे सिर्फ ‘सत्ता के साथी’ नहीं, बल्कि ‘समाज के सच्चे सारथी’ भी हैं। जनता अब सिर्फ चेहरा नहीं, काम और परिणाम देख रही है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ठीक बगल में बैठे राजभर समाज के दो कैबिनेट मंत्रियों की मौजूदगी यह साफ संदेश देती है कि सरकार में राजभर समाज की भागीदारी और राजनीतिक उपस्थिति मजबूत है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि—

क्या ये नेता सच में राजभर समाज की असली आवाज़ और जमीनी मुद्दों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं?
या फिर केवल कुर्सी तक सीमित रहकर समाज के वास्तविक अधिकारों, शिक्षा, रोजगार, सम्मान और हिस्सेदारी की लड़ाई को पीछे छोड़ दिया गया है?

समाज प्रतिनिधित्व से नहीं, काम और परिणामों से पहचान बनाता है।
आज ज़रूरत है ऐसे नेतृत्व की जो—
✔ राजभर समाज की आवाज़ सरकार के हर स्तर तक पहुंचाए
✔ हक और हिस्सेदारी की लड़ाई मजबूती से लड़े
✔ और समाज को राजनीतिक प्रतीक नहीं, वास्तविक शक्ति बनाए

आप क्या सोचते हैं?
क्या आज का नेतृत्व समाज की उम्मीदों पर खरा उतर रहा है?

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