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फिल्म रिव्यू: रजनीकांत का स्वैग ‘हिट’, कहानी हुई ‘मिस’

मनोरंजन डेस्क: सुपरस्टार रजनीकांत के फिल्मी करियर के 50 साल पूरे होने के मौके पर रिलीज हुई उनकी बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘कुली: द पावर हाउस’ सिनेमाघरों में आ गई है। 74 साल की उम्र में भी रजनीकांत का जलवा और स्वैग तो बरकरार है, लेकिन एक कमजोर और खींची हुई कहानी फिल्म का मजा किरकिरा कर देती है।


फिल्म: कुली: द पावर हाउस (2025) डायरेक्टर: लोकेश कनगराज कलाकार: रजनीकांत, श्रुति हासन, नागार्जुन, सौबिन शाहिर, उपेन्द्र (कैमियो), आमिर खान (कैमियो) रेटिंग: ★★★☆☆ (3/5)


कहानी

फिल्म की कहानी एक पूर्व कुली (रजनीकांत) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने एक जिगरी दोस्त की रहस्यमयी मौत की गुत्थी सुलझाने निकलता है। उसे शक है कि यह एक सोची-समझी हत्या है। इस मिशन में मृतक की बेटी (श्रुति हासन) उसका साथ देती है। कातिलों की तलाश उसे दयाल (सोबिन शाहिर) और साइमन (नागार्जुन) जैसे खतरनाक विलेन की दुनिया में ले जाती है। कहानी कागज़ पर जितनी दमदार लगती है, पर्दे पर उतनी ही बिखरी हुई नज़र आती है।

अभिनय और परफॉर्मेंस

पूरी फिल्म रजनीकांत के कंधों पर टिकी है और उन्होंने इसे बखूबी निभाया है। उनका चिर-परिचित अंदाज़, स्टाइल और कॉमिक टाइमिंग फैंस के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है। रजनी के बाद अगर किसी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया ہے तो वह हैं सौबिन शाहिर, जिन्होंने विलेन दयाल के किरदार में जान डाल दी है।

श्रुति हासन का रोल लंबा होने के बावजूद प्रभावहीन है। विलेन के रूप में नागार्जुन औसत लगे। उपेंद्र और आमिर खान के कैमियो फिल्म में नई ऊर्जा भरते हैं और दर्शकों के लिए एक बड़ा सरप्राइज हैं।

निर्देशन और तकनीकी पक्ष

‘कैथी’ और ‘मास्टर’ जैसी बेहतरीन फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर लोकेश कनगराज इस बार अपने रंग में नहीं दिखे। ऐसा लगता है कि रजनीकांत के स्टारडम के दबाव में उन्हें कहानी और स्क्रीनप्ले से समझौता करना पड़ा है। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी लंबाई (लगभग 3 घंटे) है। इसे आसानी से 30 मिनट छोटा किया जा सकता था, जिससे फिल्म और कसी हुई बनती।

हालांकि, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक (अनिरुद्ध) दमदार है, सिनेमैटोग्राफी शानदार है और एक्शन सीन रजनीकांत के स्टाइल को ध्यान में रखकर डिजाइन किए गए हैं।

क्यों देखें?

अगर आप रजनीकांत के डाई-हार्ड फैन हैं, तो उनके स्वैग, स्टाइल और करिश्मे के लिए यह फिल्म एक बार ज़रूर देख सकते हैं। फिल्म का पहला हाफ बेहतर है और इसमें कुछ चौंकाने वाले ट्विस्ट भी हैं। लेकिन एक कमजोर कहानी और धीमी गति की उम्मीद के साथ ही थिएटर में जाएं।

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