रोहतक: हरियाणा में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण का असर अब गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से पड़ने लगा है। पीजीआई रोहतक के गायनी विभाग की नवीन रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में प्रीमेच्योर डिलीवरी यानी समय से पहले होने वाले प्रसव के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। पीजीआई के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक वर्ष में संस्थान में कुल 13,500 प्रसव हुए, जिनमें से 18% यानी 2430 बच्चे समय से पहले जन्मे। यह चिंताजनक आँकड़ा वायु प्रदूषण और खराब पर्यावरणीय गुणवत्ता के प्रभावों को उजागर करता है।
वायु प्रदूषण शिशु तक पहुंच रहा ज़हर — डॉ. पुष्पा दहिया
PGI रोहतक के गायनी विभाग की अध्यक्ष डॉ. पुष्पा दहिया ने बताया कि प्रदूषण गर्भस्थ शिशु के लिए एक बड़ा जोखिम बन गया है। हवा में घुले अत्यंत सूक्ष्म कण (PM2.5) सांसों के जरिए माँ के शरीर में प्रवेश कर खून में मिल जाते हैं और प्लेसेंटा के माध्यम से सीधे गर्भस्थ शिशु तक पहुंचते हैं, जिससे उसकी वृद्धि व सुरक्षा प्रभावित होती है।
उन्होंने कहा कि:
- खराब हवा के कारण खांसी-जुकाम, अस्थमा और सांस की समस्या बढ़ रही है,
- तेज खांसी भी गर्भ पर नकारात्मक असर डालती है,
- यह सभी स्थितियां बच्चे के समय से पहले जन्म का कारण बनती हैं।
साथ ही हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, मलेरिया और डेंगू जैसी अन्य बीमारियां भी प्रीमेच्योर डिलीवरी के जोखिम को बढ़ाती हैं।
कितने सप्ताह पहले जन्मे बच्चों में कितना खतरा?
डॉ. दहिया के अनुसार:
- 36 सप्ताह से पहले जन्मे बच्चे प्रीमेच्योर कहलाते हैं।
- कई बच्चे 28 सप्ताह से पहले,
- कुछ 28–32 सप्ताह के बीच,
- जबकि काफी संख्या में 34–36 सप्ताह के बीच जन्म ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जितना जल्दी बच्चा पैदा होगा, जोखिम उतना अधिक होगा।
34–36 सप्ताह वाले बच्चों को अपेक्षाकृत कम जोखिम होता है।
प्रीमेच्योर बच्चों में दिखती हैं ये समस्याएं
समय से पहले जन्मे शिशु:
- बाहरी तापमान सहन नहीं कर पाते — हाइपोथर्मिया का खतरा,
- इंफेक्शन, पीलिया, शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव,
- कमजोर रेटिना — दृष्टि संबंधी समस्या,
- कमजोर इम्युनिटी — संक्रमण जल्दी,
- विकास में बाधा — आईक्यू कम होने की संभावना।
ऐसे बच्चों को विशेष देखभाल व चिकित्सकीय निगरानी की आवश्यकता होती है।
गर्भवती महिलाओं पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव — डॉ. सुरेंद्र मलिक
नागरिक अस्पताल के गायनी विभाग के वरिष्ठ विशेषज्ञ
डॉ. सुरेंद्र मलिक ने बताया:
- प्रदूषण गर्भवती महिलाओं में इंफेक्शन का खतरा बढ़ाता है।
- स्वास्थ्य खराब होने से पोषण की कमी हो जाती है।
- इससे माँ की इम्युनिटी कम होती है और
- बच्चा भी पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं कर पाता।
- प्रदूषण के कारण प्लेसेंटा बच्चे तक ऑक्सीजन सही मात्रा में नहीं पहुंचा पाता।
इन सभी कारणों से प्रीमेच्योर जन्म की संभावना बढ़ जाती है।
कैसे बरतें सावधानी?
डॉ. दहिया के सुझाव:
- गर्भवती महिलाएं नियमित जांच कराएं,
- डॉक्टर की सलाह अनुसार दवाई लें,
- खून की कमी (एनीमिया) न होने दें,
- हरी सब्जियां, दूध, दही, लस्सी का सेवन बढ़ाएं,
- प्रदूषण के दिनों में बाहर कम निकलें,
- N95 मास्क का उपयोग करें।
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