बीजिंग।
चीन में एक नया सामाजिक चलन तेजी से उभर रहा है: युवा बेरोज़गार लोग अब ऐसी कंपनियों को पैसे देकर “दफ़्तर जाने” लगे हैं, जो असल में कामकाजी नहीं हैं — बल्कि केवल “काम करने का माहौल” मुहैया कराती हैं। इन नक़ली दफ़्तरों में न कोई सैलरी मिलती है, न ही कोई असली नौकरी होती है, लेकिन युवा इसे रोजगार की उम्मीद के साथ जुड़ी सामाजिक इज़्ज़त और आत्म-संतोष का जरिया मान रहे हैं।
कैसे काम करता है यह ‘नक़ली ऑफिस कल्चर’
30 वर्षीय शुई झोउ ने अपना फूड बिज़नेस खोने के बाद डोंगगुआन शहर की एक ‘प्रिटेंड टू वर्क’ नामक कंपनी में रोज़ाना 30 युआन (करीब ₹350) देकर एक वर्कस्टेशन किराए पर लिया। यहां वह हर दिन सुबह से देर रात तक बैठते हैं, जैसे कोई नौकरीशुदा व्यक्ति करता है। इन दफ़्तरों में कंप्यूटर, वाई-फाई, मीटिंग रूम, और यहां तक कि चाय-कॉफी भी होती है — लेकिन कोई असली बॉस नहीं होता।
काम नहीं, माहौल चाहिए
ऐसे नक़ली दफ़्तरों में आने वालों में अधिकतर युवा हैं जो या तो नौकरी की तलाश कर रहे हैं या अपना स्टार्टअप शुरू करने का सपना देख रहे हैं। कुछ तो केवल अपने माता-पिता या यूनिवर्सिटी को यह दिखाने के लिए आते हैं कि वे किसी इंटर्नशिप या काम में व्यस्त हैं।
23 वर्षीय शियाओवेन तांग ने शंघाई में एक नक़ली दफ़्तर की तस्वीरें अपनी यूनिवर्सिटी को भेजकर इंटर्नशिप सर्टिफिकेट प्राप्त किया, जबकि असल में वह वहां ऑनलाइन उपन्यास लिख रही थीं।
बेरोज़गारी के बीच बना नया सहारा
चीन में युवाओं की बेरोज़गारी दर 14% से अधिक है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2025 में रिकॉर्ड 1.22 करोड़ ग्रेजुएट्स जॉब मार्केट में प्रवेश कर रहे हैं। इस प्रतिस्पर्धा और सीमित अवसरों के बीच यह ‘काम का दिखावा’ करने वाली संस्कृति एक मनोवैज्ञानिक राहत का काम कर रही है।
मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के डॉ. बिआओ शियांग कहते हैं, “यह हताशा और लाचारी की प्रतिक्रिया है। युवा खुद को समाज से कटा हुआ महसूस करते हैं, और यह नक़ली माहौल उन्हें थोड़ा सहारा देता है।”
फ्रीलांसर और डिजिटल नोमैड भी कर रहे उपयोग
इन नक़ली दफ़्तरों के 60% ग्राहक वे लोग हैं जो अस्थायी या फ्रीलांसिंग कार्य करते हैं। इनमें डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स, ऑनलाइन लेखक, और यहां तक कि कुछ राइड-हेलिंग ड्राइवर भी शामिल हैं।
डोंगगुआन स्थित कंपनी चलाने वाले फेइयू कहते हैं, “मैं वर्कस्टेशन नहीं बेच रहा, मैं इज़्ज़त दे रहा हूँ।”
क्या यह सामाजिक प्रयोग है या धोखा?
हालांकि कुछ लोग इसे “सोशल एक्सपेरिमेंट” मानते हैं, कई विशेषज्ञ इसे “इंसानी गरिमा को बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा” भी कह रहे हैं। फेइयू खुद इसे एक अस्थायी समाधान मानते हैं और कहते हैं, “हमारे नक़ली दफ़्तर को अगर हम असली अवसरों में बदल पाएं, तभी यह प्रयोग सफल माना जाएगा।”
आगे की राह
शुई झोउ अब अपना समय AI स्किल्स सीखने में बिता रहे हैं ताकि भविष्य में स्थायी नौकरी मिलने की संभावना बढ़ सके। उनका मानना है कि यदि माहौल सकारात्मक हो तो व्यक्ति खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करता है — चाहे वह दफ़्तर असली हो या नक़ली।

